गुरुवार, 27 मार्च 2008

वन संरक्षण को आंदोलन का स्वरूप देने की आवश्यकता - कुंवर विजय शाह

वन संरक्षण को आंदोलन का स्वरूप देने की आवश्यकता - कुंवर विजय शाह
वन मंत्री द्वारा वानिकी योजनाओं पर दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ
वन एवं आदिम जाति कल्याण मंत्री कुंवर विजय शाह ने वन संरक्षण प्रयासों को जनसाधारण तक पहुंचाने के लिए आंदोलन का स्वरूप दिये जाने की आवश्यकता पर बल दिया है। कुंवर शाह ने आज यहां प्रशासन अकादमी में पारिस्थितकीय सेवाओं को वानिकी योजनाओं में सम्मिलित करने की प्रक्रिया पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी को पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मुद्दो पर आवश्यक जानकारी दी जाना चाहिए। इस दो दिवसीय कार्यशाला के विभिन्न सत्रों में वन, जैव विविधता, ईको पर्यटन, पारिस्थितकीय सेवाओं का आर्थिक मूल्यांकन तथा आजीविका पर चर्चा की जाएगी। इस अवसर पर महानिदेशक प्रशासन अकादमी श्रीमती माला श्रीवास्तव, प्रमुख सचिव वन श्री प्रशांत मेहता, प्रमुख सचिव जल संसाधन श्री अरविन्द जोशी सहित वन तथा जल संसाधन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी सहित ग्रामीणजन उपस्थित थे।
कुंवर शाह ने कहा कि जलाऊ लकड़ी के उपयोग से ग्रामीण अंचलों में महिलाओें के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में ग्रामीणों को कम दरों पर गैस कनेक्शन, प्रेशर कुकर, मच्छरदानी तथा कम्बल उपलब्ध कराने की पहल की गई है। इसके परिणाम स्वरूप घरों में जलाऊ लकड़ी की खपत में काफी कमी आयी है। इसी प्रकार ग्रामीणों को साईकिल उपलब्ध करा कर उनकी कार्यक्षमता का उपयोग बेहतर कामों में करने का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा जलाऊ लकड़ी के उपयोग को सीमित करने के लिए बेहतर विकल्प उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
वनमंत्री ने बताया कि वन्यजीव प्रबंधन के क्षेत्र में किए गए प्रयासों को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया हैं। राज्य सरकार की पहल पर संरक्षित क्षेत्रों से ग्रामीणों के पुनर्वास के लिए केन्द्र सरकार द्वारा आर्कषक पैकेज स्वीकृत किया गया हैं। अब व्यवस्थापन के लिए प्रति परिवार एक लाख रूपये की जगह दस लाख रूपये ग्रामीणों को उपलब्ध होंगे और वे बेहतर जीवन व्यतीत कर सकेंगे। संरक्षित क्षेत्रों पर जैविक दबाव कम होने से वन्यजीवों के प्रबंधन को बेहतर ढंग से क्रियान्वित किया जा सकेगा।
कुंवर शाह ने कहा कि जनसंख्या में बढ़ोत्तरी का सीधा प्रभाव जंगल पर पड़ता है। आम आदमी आवश्यकताओं के लिए जंगल का उपयोग करता आया है। संयुक्त वन प्रबंधन के तहत अब वनों की सुरक्षा और विकास से ग्रामीणों को जोड़ा गया है। बेहतर वन प्रबंधन के लिए ग्रामीणों को वनक्षेत्र से प्राप्त आय का एक निश्चित भाग दिया जाता है। वन समितियों के सदस्यों को विगत दिनों करीब 22 करोड़ रूपये का लाभांश वितरित किया गया है। ग्रामीणों द्वारा वन प्रबंधन के कार्यों से जुड़ने का सीधा प्रभाव वनक्षेत्रों पर पड़ा है। वनक्षेत्रों में आग लगने की घटनाएं कम हुई है। अब दशमलव एक प्रतिशत वन क्षेत्र ही आग से प्रभावित होता है, जबकि चार वर्षों के पूर्व चार से पांच प्रतिशत वनक्षेत्र प्रभावित होता था।
वन मंत्री ने बताया कि अतिथियों का स्वागत पौधे भेंट करने की परम्परा से निश्चय ही जनसाधारण मेें पेड़ पौधों के प्रति लगाव पैदा होगा। इससे समाज में दूसरों के लिए जीने का संदेश भी जाता है।
प्रसिध्द पर्यावरणविद् तथा सेंचुरी एशिया पत्रिका के संपादक श्री बिट्टू सहगल ने आर्कषक छायाचित्रों के माध्यम से कार्यशाला की विषय वस्तु को सामने रखते हुए कहा कि मानव जीवन के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए समाज के प्रत्येक स्तर पर वन तथा जल का संरक्षण किया जाना आवश्यक है। महानिदेशक, प्रशासन अकादमी श्रीमती माला श्रीवास्तव ने कहा कि वन और जल सरंक्षण के लिए जनमत बनाने के लिए व्यापक रणनीति बनाई जाना चाहिए।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक, श्री व्ही. आर. खरे ने कहा कि आम धारणा है कि वनों से लकड़ी ही प्राप्त होती हैं, जबकि पृथ्वी पर जीवन आधार के लिए वन की भूमिका से कम ही लोग परिचित हैं। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी), डॉ पी.बी. गंगोपाध्याय ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए आम लोगों को जोड़ने की दिशा में प्रयास किया जाना चाहिए।
प्रारंभ में अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यशाला का शुभारम्भ किया। कार्यशाला के संचालक श्री आर. श्रीनिवास मूर्ति ने कार्यशाला आयोजन की रूपरेखा रखी। संचालक प्रशासन अकादमी श्रीमती मधु हाण्डा ने आभार व्यक्त किया।

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