शनिवार, 28 जून 2008

हिन्दी सांस्कृतिक विरासत और एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा : श्रीमती प्रतिभा पाटील

हिन्दी सांस्कृतिक विरासत और एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा : श्रीमती प्रतिभा पाटील
हिन्दी हमारी एकता और सांस्कृतिक मूल्यों का आईना, राष्ट्रपति मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के कार्यक्रम में
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटील ने कहा है कि हिन्दी एक प्राचीन भाषा है, यह हमारी सांस्कृतिक विरासत है और अब यह अन्तर्राष्ट्रीय भाषा बन गयी है। हिन्दी हमारी एकता, सांस्कृतिक मूल्यों, दर्शन, विचारों और नैतिक मूल्यों का आईना है। कार्य में एकरूपता के लिये हिन्दी का मानक साफ्टवेयर विकसित किया जाना चाहिये। राष्ट्रपति श्रीमती पाटील आज इंदौर में मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के सभागृह के शिलान्यास समारोह को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने यहां संस्कृत शोध केन्द्र का उद्धाटन भी किया। समारोह में राज्यपाल डॉ.बलराम जाखड़ और मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान विशेष रूप से मौजूद थे।
राष्ट्रपति श्रीमती पाटील ने कहा कि हिन्दी का मूल स्त्रोत संस्कृत है। हिन्दी भाषा के क्रमिक विकास के फलस्वरूप 19 वीं शताब्दी में यह अपने वर्तमान स्वरूप में आई। देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी एक वैज्ञानिक भाषा है। देश को एकता के सूत्र में बाँधने की शक्ति केवल हिन्दी में है। हमारी आने वाली पीढ़ियों को हमारी संस्कृति, सभ्यता और मूल्यों के बारे में जानकारी देने का मुख्य स्त्रोत भाषा ही है। किसी भी राष्ट्र के विकास तथा प्रगति में भाषा का बहुत योगदान होता है। यदि देश के नागरिकों को अच्छा, सरल, सुबोध और उपयोगी साहित्य पढ़ने को मिलता है तो लोग ज्ञानवान, क्षमतावान, जागरूक और कौशल निपुण हो सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि विज्ञान के क्षेत्र में आए क्रांतिकारी परिवर्तन ने घर-घर, गाँव-गाँव में टेलीविजन पहुंचा दिया है। अनेक नए हिन्दी चैनल भी शुरू हुए हैं। इस क्रांतिकारी परिवर्तन से हिन्दी की एक लहर-सी चल पड़ी है। आज सभी हिन्दी के महत्व को पहचानने लगे हैं। संचार और प्रौद्योगिकी के इस युग में विविध हिन्दी साफ्टवेयर प्रयोग में लाए जा रहे हैं। हमें मानकसाफ्टवेयर बाजार में लाना चाहिये ताकि कार्य में एकरूपता आए। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र के हमारे युवा विशेषज्ञ निश्चित ही यह काम कर सकते हैं। हिन्दी को आगे लाकर कम्प्यूटर जगत में एक नई क्रांति लानी चाहिये ताकि हिन्दी को एक मजबूत तकनीकी आधार मिल सके। उन्होंने कहा कि भारत में ही नहीं पूरे विश्व में हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ रहा है और इसके प्रति दिलचस्पी पैदा हो रही है। अरब देशों, यूरोप, अमरीका तक भी हिन्दी की ख्याति फैल गयी है। अनेक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में हिन्दी विभाग स्थापित किए गए हैं। मॉरीशस, सूरीनाम में हिन्दी का काफी प्रचार-प्रसार हुआ है और वहाँ इसे महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है। इसका श्रेय अनिवासी भारतीयों को भी है। हिन्दी को उन्होंने अपनी अस्मिता से जोड़ रखा है और वे उसके संरक्षण और प्रचार-प्रसार से जुडे हुए हैं।
उन्होंने कहा कि मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति हिन्दी के विकास में बहुत सक्रिय योगदान दे रही है और देश की प्राचीनतम व अग्रणी संस्थाओं में से एक है। समिति का नौ दशक पुराना इतिहास साक्षी है कि हिन्दी की प्रगति और संवर्ध्दन के लिये यह संस्था निरंतर महत्वपूर्ण प्रयास करती रही है। समिति को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भरपूर स्नेह और आत्मीयता प्राप्त थी। समिति के भवन का शिलान्यास और बाद में भवन का उद्धाटन दोनों ही महात्मा गांधी द्वारा किए गए थे। यह समिति का सौभाग्य है कि गांधी जी और प्रसिध्द विद्वान राहुल सांस्कृत्यायन, महादेवी वर्मा जैसी महान हस्तियां इस संस्थान से जुड़ी रही। समिति, वर्ष 1927 से 'वीणा' नाम की एक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन करती आ रही है जिसके माध्यम से भारतीय सहित्यकारों को अभिव्यक्ति के अवसर मिलते रहे हैं। बहुत कम संस्थाएँ हैं जो इतने लम्बे समय से हिन्दी प्रचार और देश सेवा में जुटी हुयी हैं। यह समिति मध्यप्रदेश में स्थित है जहाँ अनेक प्रसिध्द लेखक व कवि हुए हैं। मुक्ति बोध, हरिशंकर परसाई, श्रीकांत वर्मा, भवानी प्रसाद मिश्र और सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य को समृध्द बनाया है।
राज्यपाल डॉ. बलराम जाखड़ ने कहा कि भाषा ऐसी हो जो आम लोगों की भाषा हो और एक-दूसरे को जोड़े। भाषा का ज्ञान किसी को कमजोर नहीं बल्कि मजबूत बनाता है। हिन्दी हर भाषा को जोड़ती है। ऐसी हिन्दी का प्रतिपादन करें जो जन-जन की भाषा हो। इसे कठिन बनाकर लोगों से दूर नहीं करें। इसे प्यार, सौहार्द, स्नेह और भाईचारे को अभिव्यक्त करने वाली भाषा बनाये। उन्होंने बताया कि स्वामी दयानंद ने कहा था कि जब तक स्वभाषा नही हो आत्मा का उत्थान नहीं होता। संस्कृत हर भाषा की जननी है। हिन्दी का विकास भी इसी से हुआ है। भाषा ऐसी होना चाहिये जो सरल और लोगों की पहुंच में हो।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुये मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि हम अंग्रेजी एवं अन्य भाषा जाने किन्तु अपनी मातृभाषा हिन्दी का सम्मान करे। अपनी निजी भाषा को विशाल वट वृक्ष के रूप में विकसित करने के लिये प्रयास करते रहे। हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ में मान्यता प्राप्त भाषा बने। हिंदी आगे बढ़ती रहे, इस तरह के सारे प्रयत्नों में राज्य सरकार साथ है। श्री चौहान ने राष्ट्रपति श्रीमती पाटिल का स्वागत करते हुये कहा कि मध्यप्रदेश प्राकृतिक सौदर्य, वन, खनिज, जल और जन सम्पदा से परिपूर्ण अनुपम प्रदेश है। यहाँ की जनता राष्ट्र प्रेमी और देशभक्त है। ऐसे प्रदेश में उनका स्वागत है। मध्यप्रदेश ने हिन्दी के कई अच्छे साहित्यकार दिये हैं। उन्होंने समिति द्वारा हिन्दी पत्रिका वीणा के निर्बाध प्रकाशन और राष्ट्रीय तथा प्रदेश स्तर पर हिन्दी के विकास प्रचार-प्रसार के लिये कार्य करने के लिये पुरस्कार देने के संकल्पों के संबंध में कहा कि इन्हें पूरा करने के लिये सरकार सहयोग करेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में इसी वर्ष से उज्जैन में पाणिणि संस्कृत विश्वविद्यालय प्रारंभ कर दिया जायेगा। इसके साथ ही विकासखण्ड स्तर में संस्कृत के शिक्षकों की नियुक्ति भी कर दी जायेगी।
इस अवसर पर सांसद एवं मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति की संरक्षक श्रीमती सुमित्रा महाजन ने कहा कि समिति के सभा भवन का शिलान्यास सिर्फ भवन ही नहीं बल्कि हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रसार की बुनियाद होगा। समिति द्वारा केवल हिन्दी भाषा ही नहीं बल्कि इसके साथ सभी भारतीय भाषाओं के प्रसार एवं उत्थान की दिशा में कार्य करेगी। आरंभ में स्वागत भाषण मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य समिति के सभापति श्री नारायण प्रसाद शुक्ला ने दिया तथा अंत में आभार प्रदर्शन समिति के प्रधानमंत्री श्री बंसतसिंह जौहरी ने किया। इस मौके पर बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी, जनप्रतिनिधि और गणमान्य नागरिक मौजूद थे।

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