शनिवार, 8 मार्च 2008

बालिका भ्रूण हत्या रोकने के लिए सिर्फ एक कानून बने : न्यायमूर्ति श्री डी.एम. धर्माधिकारी

बालिका भ्रूण हत्या रोकने के लिए सिर्फ एक कानून बने : न्यायमूर्ति श्री डी.एम. धर्माधिकारी
बेटियों को जन्म देने का हक दे समाज, नई टेक्नालॉजी का दुरुपयोग बंद हो, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ''कन्या भ्रूण हत्या : समस्या एवं समाधान'' पर सेमीनार हुआ
मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री डी.एम. धर्माधिकारी ने कहा है कि बालिका भ्रूण हत्या को सख्ती से रोकने के लिए वर्तमान में प्रचलित विभिन्न कानूनों को मिलाकर एक नया कानून बनाना चाहिये। इसमें चिकित्सा जगत का भी व्यापक सहयोग लिया जाना चाहिये। न्यायमूर्ति श्री धर्माधिकारी आज यहां समन्वय भवन में लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग और मानव अधिकार आयोग द्वारा 'बालिका भ्रूण हत्या : समस्या एवं समाधान' विषय पर आयोजित सेमिनार को सम्बोधित कर रहे थे। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित इस सेमीनार में आयोग के सदस्यगण न्यायमूर्ति श्री एन.एस. आजाद, श्री विजय शुक्ल, आयुक्त स्वास्थ्य श्रीमती अलका उपाध्याय, संचालक चिकित्सा सेवाएं डॉ. एम.के. जोशी, यूनिसेफ के सलाहकार डॉ. मनोहर अगनानी आदि उपस्थित थे।
न्यायमूर्ति श्री डी.एम. धर्माधिकारी ने कहा कि बालिका भ्रूण हत्या जैसे अपराध को रोकने में महिलाओं विशेषकर चिकित्सकों की अहम भूमिका है। इस मामले में जब तक महिलाएं एकजुट नहीं होंगी, तब तक भ्रूण हत्या जैसी समस्या का निदान नहीं हो सकता। बालिका भ्रूण हत्या को रोकने के लिए मौजूदा कानून के प्रति लोगों में कोई भय नहीं है। इसीलिए कोई ऐसा नया कानून बने जिसमें दोषी व्यक्तियों को इस घृणित कार्य में लिप्त होने पर सख्त दण्ड दिया जा सके। बालिका भ्रूण हत्या को रोकने में केवल कानून ही नहीं बल्कि समाज को भी आगे आना होगा। चिकित्सा जगत से जुड़ी महिलाएं भी इसमें अपने सुझाव दे सकती हैं। चिकित्सकों को बालिका भ्रूण हत्या कराने वाले तत्वों को उजागर करना चाहिए। कन्या भ्रूण हत्या रोकने में महिला चिकित्सकों की महत्वपूर्ण भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। पीएनडीटी एक्ट को पालन कराने का दायित्व चिकित्सकों पर ही है क्योंकि वे भ्रूण हत्या के लिए जिम्मेदार माता-पिता की काउंसिलिंग भी कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति श्री धर्माधिकारी ने कहा कि आज महिलाओं को अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है। पुरुष प्रधान समाज को बदलने के लिए उन्हें पहले सामाजिक कुरीतियों को खत्म तथा अपने अधिकारों के प्रति सचेत व जागरूक होना होगा। विवाह की मौजूदा पध्दति में परिवर्तन लाना होगा। महिलाएं अब भी सजग नहीं हुईं तो पुराने रीति-रिवाजों, सामाजिक बुराईयों को बदलने का कार्य अब उनकी नई पीढ़ी करेगी। विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के आगे आने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है, जब महिलाएं भी अध्यात्म के क्षेत्र में आगे आ रही हैं। उन्होंने कहा कि जब स्त्री का मानस बदलेगा तो उसका आत्मबल भी बढ़ेगा। आज जहां लिंगानुपात घट रहा है वहां स्थितियां भी तेजी से बदल रही हैं। विज्ञान और तकनीक का उपयोग हो लेकिन दुरुपयोग कतई न हो।
सेमीनार में श्रीमती अलका उपाध्याय ने घटते लिंगानुपात पर चिंता व्यक्त करते हुए वर्ष 1901 से 2007 तक का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि वर्ष 1901 में देश का एवं मध्यप्रदेश का लिंगानुपात 972 (प्रति हजार) तथा 2001 में देश का लिंगानुपात 933 एवं मध्यप्रदेश का 919 था। इसी तरह 1961 में शिशु लिंगानुपात (0 से 6 वर्ष) देश का जहां 976 था तो वह वर्ष 2001 में घटकर 927 हो गया। इसी तरह मध्यप्रदेश में शिशु लिंगानुपात की भी 967 से घटकर 932 हो गया। वर्ष 2001 में मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में लिंगानुपात 927 एवं शहरी क्षेत्रों में 809 बताया गया है। ग्वालियर-चंबल संभाग में स्थिति चिंताजनक है। मुरैना, ग्वालियर, श्योपुर, शिवपुरी, दतिया, गुना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, होशंगाबाद, विदिशा, भोपाल तथा रायसेन में लिंगानुपात 900 से भी कम है। प्रदेश में सोनोग्राफी करने वाले 81 शासकीय तथा 1135 प्रायवेट क्लीनिक हैं, जिनमें से अब तक 291 क्लीनिकों का निरीक्षण किया जा चुका है।
यूनिसेफ के सलाहकार डॉ. मनोहर अगनानी ने कहा कि घटता लिंगानुपात समाज में महिलाओं के प्रति सोच को दर्शाता है। ग्वालियर-चंबल संभाग के पांच जिले घटते लिंगानुपात के लिए बदनाम हो चुके हैं। सोनोग्राफी तकनीक का निरंतर दुरुपयोग हो रहा है। लिंगानुपात अंतर समाप्त नहीं हुआ तो इसके घातक परिणाम सामने आयेंगे, जिससे सबसे अधिक गरीब तबका प्रभावित होगा। बालिका भ्रूण हत्या एक ऐसा अपराध है जो परिवारजन संबंधित डाक्टर के साथ मिलकर करते हैं। इस अपराध का चूंकि कोई साक्ष्य नहीं होता, इसीलिए दोषी बच निकलते हैं। उन्होंने कहा कि सोनोग्राफी मशीनों के दुरुपयोग को रोककर स्त्रियों के अस्तित्व को बचाया जा सकता है। समाज को चाहिए कि वह बेटियों को जन्म लेने का हक दें।
इस अवसर पर कानूनविद श्री पी.के. शुक्ल ने कहा कि चिकित्सकों को पी.एन.डी.टी. तथा अन्य संबंधित कानूनों की जानकारी होना चाहिए। चिकित्सक बनते समय ली गई शपथ को उन्हें नहीं भूलना चाहिए। भारत में अवैध गर्भपात के संबंध में कठोर कानून की आवश्यकता है। कन्या भ्रूण हत्या के द्वारा ही संस्कृति के विनाश को रोकना होगा। भ्रूण हत्या जैसे कलंक को खत्म करने के लिए संबंधित सभी कानूनों को एक साथ लागू किया जाना चाहिए। सेमीनार को उप संचालक स्वास्थ्य डॉ. वीणा सिन्हा ने भी संबोधित किया। इसके पूर्व डॉ. एम.के. जोशी ने आयोजन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।
प्रारंभ में न्यायमूर्ति श्री धर्माधिकारी ने दीप प्रज्जवलित कर सेमीनार का उद्धाटन किया। श्रीमती अलका उपाध्याय सहित अन्य अधिकारियों ने अतिथियों का स्वागत किया। अंत में बालिका भ्रूण हत्या एवं इसमें सहभागी बनने से रोकने के लिए सभी को शपथ दिलाई गई। कार्यक्रम में पूर्व मंत्री श्रीमती सविता वाजपेई, स्वास्थ्य एवं मानव अधिकार आयोग के अधिकारी, चिकित्सक, स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि, महिला प्राध्यापक और छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित थी।

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