शुक्रवार, 14 मार्च 2008

रालामंडल का डिनोटीफिकेशन किसी दवाब के कारण नहीं

रालामंडल का डिनोटीफिकेशन किसी दवाब के कारण नहीं
14 मार्च08/इंदौर के पास स्थित रालामंडल अभ्यारण्य को डीनोटीफाई करने की कार्यवाही किसी भी दवाब के कारण नही की जा रही है। प्रधान मुख्य वनसंरक्षक ने कतिपय समाचार पत्रों मे प्रकाशित इस आशय के समाचार को भ्रामक बताया है कि बिल्डर लॉबी के दवाब में इस अभ्यारण्य को रूप में डिनोटीफाई किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अभ्यारण्य न रहने पर भी यह क्षेत्र आरक्षित वन के रूप में बना रहेगा और इसका उपयोग गैर वानिकी कार्यो के लिए नहीं होगा।
रालामंडल अभ्यारण्य का गठन राज्य शासन की अधिसूचना द्वारा 21 अगस्त 1989 को किया गया। इसका क्षेत्रफल 234.55 हेक्टेयर है। इन्दौर शहर से लगा यह क्षेत्र भारतीय वन अधिनियम के अंतर्गत आरक्षित वन घोषित किया गया है। अभ्यारण्य क्षेत्र के अंदर पहाड़ी पर एक शिकारगाह नाम का पुराना भवन है। अभ्यारण्य का पूरा क्षेत्र चैनलिंक फेन्स से घिरा हुआ है। इस अभ्यारण्य में इन्दौर शहर से काफी लोग घूमने और प्रकृति का आनंद लेने आते हैं।
इस अभ्यारण्य में कोई महत्वपूर्ण स्थानीय वन्यप्राणी नहीं है। केवल अन्य क्षेत्रों से लाकर रखे गये नीलगाय, चीतल, चिंकारा आदि हैं। हालाकि वन्य प्राणियों की दृष्टि से इस अभ्यारण्य का कोई विशेष महत्व नहीं है, लेकिन इन्दौर शहर के पास स्थित होने से इसे ईको पर्यटन एवं पर्यावरण शिक्षा और प्रचार-प्रसार के लिए उपयोग किये जाने की काफी संभावनाएं है। इस संबंध में इन्दौर जिले के गणमान्य नागरिकों के सुझाव भी प्राप्त हुये हैं। लेकिन इसे अभ्यारण्य बनाये रखने पर वन्यप्राणी (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के वर्तमान प्रावधानों तथा सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के कारण इस क्षेत्र में स्थित पुराने भवन शिकारगार को इंटरप्रिटेशन सेन्टर के रूप में विकसित करने, केम्ंपिग साइट्स विकसित करने तथा पर्यावरण शिक्षण केन्द्र बनाने में कठिनाई आ रही है।
जब इस क्षेत्र को अभ्यारण्य घोषित किया गया था तब अत्यधिक जैविक दवाब के कारण यह पहाड़ी वनविहीन हो गयी थी और शहर के नजदीक होने से यह क्षेत्र अतिक्रमण की दृष्टि से भी काफी संवेदनशील था। अब सम्पूर्ण क्षेत्र वनाच्छादित होकर प्राकृतिक वन में परिवर्तित हो चुका है। अत: इसे ईको पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने में आ रही कठिनाई को दूर करने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश ईको पर्यटन विकास बोर्ड एवं मध्यप्रदेश राज्यवन्य प्राणी बोर्ड द्वारा भी रालामंडल अभ्यारण्य को डिनोटीफाई करने की अनुशंसा की गयी है।
वन्यप्राणी (संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रीय वन्यप्राणी बोर्ड की अनुमति के बिना राज्य शासन अभ्यारण्य की सीमाओं में परिवर्तन नहीं कर सकता।
राज्य शासन ने रालामंडल अभ्यारण्य को डिनोटीफाई करने के लिए केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को पत्र लिखकर प्रस्ताव राष्ट्रीय वन प्राणी संरक्षण बोर्ड के समक्ष विचारार्थ रखने का अनुरोध किया है। इसकी अनुशंसा प्राप्त हो जाने पर सर्वोच्च न्यायालय से अनुमति लेने की कार्यवाही की जाएगी। इसके बाद ही इसे डिनोटीफाई करने की वैधानिक कार्यवाही हो सकेगी।
केन्द्र शासन को यह भी स्पष्ट किया गया है कि अभ्यारण्य के रूप में डिनोटीफाई करने के बाद भी इसका आरक्षित वन के रूप में प्रबंधन किया जाएगा और भारतीय वन अधिनियम तथा वनसंरक्षण अधिनियम, 1980 के प्रावधाओं को कड़ाई से पालन किया जाएगा।

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