शनिवार, 1 मार्च 2008

छोटे किसानों की कर्ज माफी स्वागत योग्य लेकिन खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने और कदम जरूरी : मुख्यमंत्री श्री चौहान

छोटे किसानों की कर्ज माफी स्वागत योग्य लेकिन खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने और कदम जरूरी : मुख्यमंत्री श्री चौहान
पीछे रह गए राज्यों को ज्यादा आवंटन जरूरी
मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने आज संसद में प्रस्तुत केन्द्रीय बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि छोटे किसानों की कर्ज माफी स्वागत योग्य कदम है लेकिन खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने के लिये किसान की लागत घटाने के उपाय करना होंगे नहीं तो किसान फिर कर्ज के दुष्चक्र में फंस जायेगा।
श्री चौहान ने कहा कि लागत घटाने के लिये कृषि ब्याज दरों को चार प्रतिशत किये जाने, सिंचाई के साधनों को बढ़ाने, किसानों को सीधे खाद की सबसिडी देने, बिजली उपलब्ध कराने तथा खाद बीज आदि की कीमतों में कमी जरूरी है। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही परंपरागत गेहूं, चने की खेती के स्थान पर व्यवसायिक खेती को बढ़ावा देने तथा ग्रामीण सड़कों एवं कोल्ड स्टोरेज आदि की सुविधाओं के लिये ज्यादा प्रावधान आवश्यक हैं। तभी देश की लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या किसानों की भलाई हो सकेगी।
श्री चौहान ने कहा कि केन्द्र को विकसित तथा ऐतिहासिक-भौगोलिक कारणों से पिछड़े राज्यों के बीच भेद कर मध्यप्रदेश जैसे पिछड़े राज्यों को विशेष सहायता या पैकेज देना चाहिये। उन्होंने कहा कि वित्तीय आवंटन के समय पंजाब और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों को एक जैसा नहीं देखा जाना चाहिये। आज स्थिति यह है कि केन्द्र सरकार नई रेल्वे लाइन बिछाने के लिये मध्यप्रदेश से भी 50 प्रतिशत लागत मांगती है।
श्री चौहान ने कहा कि पिछली राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में मैंने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की उपस्थिति में आगामी दो पंचवर्षीय योजनाओं को जल योजनाएं घोषित करने का आग्रह किया था। किसान को यदि पानी मिल जाए तो उसकी आधी समस्याओं का निराकरण हो जाता है। मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के संसाधन सीमित हैं फिर भी हमने गेहूं की खरीदी पर सौ रूपये बोनस तथा सहकारी कृषि ऋणों पर ब्याज दर पहले सात प्रतिशत और अब पांच प्रतिशत करने का निर्णय लिया है जबकि केन्द्र सरकार अगले वर्ष से सहकारी कृषि ऋण की दर सात प्रतिशत कर रही है। हमें आशा थी कि केन्द्र सरकार इस दर को चार प्रतिशत करेगी।
आयकर की सीमा बढ़ाने को उचित बताते हुए मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि केन्द्र सरकार मध्यप्रदेश में गरीबों की संख्या 41 लाख ही मानती है तथा उसी को आधार बनाकर राशन दुकानों के लिये खाद्यान्न और कैरोसिन तेल देती है जबकि मध्यप्रदेश में गरीबों की वास्तविक संख्या 60 लाख है। इसी प्रकार इंदिरा आवास के लिये भी राज्य की दो प्रतिशत जनसंख्या तथा आंध्रप्रदेश की 70 प्रतिशत जनसंख्या को आवासहीन श्रेणी में माना गया है। मध्यप्रदेश के अर्धकच्चे कबेलू लगी झोपड़ियों को अर्धपक्के घरों में गिनने के कारण यह स्थिति बनी है। इस कारण मध्यप्रदेश के आवासहीनों को इंदिरा आवास योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा। श्री चौहान ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिये और अधिक आवंटन होना चाहिये।

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