सोमवार, 22 सितंबर 2008

बेहड़ी जमीन पूंजीपतियों से लेकर किसानों को दी जाए : जेन

बेहड़ी जमीन पूंजीपतियों से लेकर किसानों को दी जाए : जेन
अंचल की बेहड़ी जमीन को सेठों को मुफ्त में दी गई
किसानों को दी जाए जमीन नहीं तो होगा आंदोलन
संजय गुप्‍ता(मांडिल), मुरैना ब्‍यूरो चीफ मुरैना,
21 सितम्बर। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चम्बल अंचल की गरीब और मजदूर किसानों के साथ धोखा किया है। प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा चम्बल संभाग में स्थित बेहड़ की जमीन को बाहर की कम्पनियों और पूंजीपतियों को बिना कोई शुल्क लिये दे दिया है। प्रदेश भाजपा सरकार की इस किसान विरोधी निती के चलते जिले के ग्रामीण अंचल के किसान भूमि के लिए तरसेगें। इस बेहड़ी जमीन पर किसान अपनी मेहनत से अन्न लहलहा देगें, जिससे चंबल में बन हरे बेहड़ की जमीन को कटाव से रोका जा सकेगा। अगर प्रदेश सरकार 15 दिन के अंदर बेहड़ भूमि किसानों को देने तथा कंपनियों व सेठों के आवेदन निरस्त करने की घोषणा नहीं की तों मजबूर होकर चम्बल क्षेत्र के ग्रामीणों को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा। उक्त बात पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष करन सिंह जैन ने एक प्रेस विज्ञप्ति में दी।
करन सिंह जेन ने कहा कि चंबल संभाग के मुरैना, श्योपुर और भिण्ड जिले में तीन लाख दस हजार हैक्टरयर बीहड़ी क्षेत्र है। इन क्षेत्रों में 15 नदियां प्रतिबर्ष कटाव के द्वारा 800 हैक्टर्स प्रतिवर्ष बेहड़ बनाती है। चंबल के 2362 गांवों में से 1446 ग्राम इससे प्रभावित है। ग्वालियर स्टेट के समय से ही बेहड़ों को कृषि योग्य बनाने के प्रयत्न हुए। सन 1919 व 1945 में तत्कालीन महाराज ने बेहड़ की भूमि बांध बनाने के लिए किसानों को पट्टे पर दी उनमें से कई बांध आज भी है तथा भूमि पर कृषि हो रही है। उसके बाद रियासत समाप्त हो गई और मध्यभारत में शासन ने बेहड़ भूमि पट्टे पर देने के नियम बने लेकिन 1956 में मध्यप्रदेश बनने के बाद वो स्कीम समाप्त कर दी गई। उसके बाद समय - समय पर कई स्कीम चंबल की भूमि को समतल करने और कटाव रोकने के लिए बनाई गई। लेकिन कोई भी स्कीम सफल नहीं हो सकी। जेन ने बताया कि मध्यप्रदेश के कांग्रेस सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने चंबल संभाग की बेहड़ समस्या को गंभीरता से लेते हुए चम्बल संभाग के सर्वागीण विकास और बेहड़ों के उध्दार के लिए चम्बल विकास प्राधिकरण गठित किया गया। जिसमें सम्बन्धित विभागों के अधिकारियों के साथ कुछ समाज सेवियों को भी सदस्य बनाया। लेकिन अर्जुन सिंह की इस योजना पर कोई अमल हो पाता इससे पहले ही वह मुख्यमंत्री पद से हट गए। उनके हटते ही प्राधिकरण और बेहड़ उपचार की योजना भी समाप्त हो गई। पूर्व अध्यक्ष करन सिंह ने कहा कि बेहड़ों के उध्दार की समस्या चम्बल संभाग के ग्रामीणों की सामाजिक समस्या है। युवकों में बेरोजगारी उनकी शिक्षा दीक्षा युवकों के विवाह न हो पाना आदि ऐसी समस्याऐं है जो बेहड़ के ग्रामीण झेल रहे है। डकैतों और पुलिस दोनों के ही कोप का भाजन इन्हें बनना पड़ता है। इसलिए इन ग्रामीणों की बेहड़ की समस्या सामाजिक है। किन्तु शासन एवं प्रशासन मे बैठे महानुभावों द्वारा अभी तक इसे इस क्षेत्र के ग्रामीणों की उपरोक्त परेशानियों को दृष्टि में रख कर विचार नहीं किया गया। जैन ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि प्रदेश सरकार बेहड़ की इस भूमि को बाहर की कम्पनियों और पूंजीपतियों को दे रही है। इसके एवज में सरकार कोई शुल्क भी नहीं ले रही है। किसानों को भूमि दिए जाने के लिए तो कड़ नियम है किन्तु पूंजीपतियों को भूमि दिए जाने के लिए क्या नियम बने है इसकी जानकारी किसी को नहीं है। चंबल की बेहड़ी जमीन का पट्टा दिए जाने के लिए न तो कोई विज्ञप्ति जारी की गई है, न ही ग्राम पंचायत से राय ली गई है। कोई भी कम्पनी चाहे जहां जमीन ले सकती है। करन सिंह जेन ने कहा कि कम्पनियां इन भूमि पर अन्न पैदा नहीं करेगी बल्कि पेड़ लगायेगी। और कुछ बर्ष बाद भूमि उन्ही की हो जावेगी। परिणाम यह होगा कि भविष्य में क्षेत्र के किसान और ग्रामीण्ा कृषि के लिए भूमि को तरसेगें। प्रदेश सरकार का ये कदम निश्चित तोर से किसान विरोधी है। जेन ने कहा कि हमारें गांवों के युवक पढ़े लिखे और अनपढ़ आज बेरोजगार मारे - मारे फिर रहे है, गांव के भूमिहीन भरपेट भोजन को तरस रहे है फिर भी आप हमारे हकों को छीनकर बड़े सेठो को इस जमीन को दे रहे हो। आप कैसे किसान के बेटे हो जो हजारों लाखों किसानों के और ग्रामीणों पर ऐसा जुल्म कर रहे हों। इस जमीन को हम भूमिहीन किसानोंव मजदूरों को दस - दस बीघा के टुकड़ों में बांट दो, हम अपनी मेहनत से इसमें अन्न लहलहा देगें, जो हमारा भी पेट भरेगा और इस क्षेत्र के लोगों का भी पेट भरेगा क्षेत्र में डाकू भी नहीं बनेगें और न पनपेगें। अगर प्रदेश सरकार 15 दिन के अंदर बेहड़ भूमि किसानों को देने तथा कंपनियों व सेठों के आवेदन निरस्त करने की घोषणा नहीं की तों मजबूर होकर चम्बल क्षेत्र के ग्रामीणों को आन्दोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा।

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